तेरा जिक्र
उसने कहा, मेरे घर में जब जब तेरा जिक्र होता है, मुझे फ़िक्र होता है… मैंने कहा, मेरे घर में जब न तेरा जिक्र होता है, मुझे तब फ़िक्र होता है… उपिंदर वडैच :
उसने कहा, मेरे घर में जब जब तेरा जिक्र होता है, मुझे फ़िक्र होता है… मैंने कहा, मेरे घर में जब न तेरा जिक्र होता है, मुझे तब फ़िक्र होता है… उपिंदर वडैच :
वो बोल कर भूल गए, या भूल कर बोल गए, कि तुमसे दिल की बात कहनी है… उपिंदर वडैच
फ़िक्र होता नहीं है जब, जुबां से तू न कुछ बोले, फ़िक्र होता है जब तेरी, ख़ामोशी भी न कुछ बोले… उपिंदर वडैच
मैं पेड़ की हर शाख के हर पत्ते पर उसका नाम लिख बैठा, भूल गया था कि पतझड़ भी आएगी… उपिंदर वडैच
था बारिश का शुकराना, उसका छाता लेकर आना, छाते की छत बनाकर, नज़रों से मुझे बुलाना… फिर भरे बाजार की सुन्नी राहें, मीलों चलते जाना, छाते को पकडे हाथों की, उंगलिओं का टकराना… मेरी शर्ट और उसकी कुर्ती के, सांसों…
मैं तन्हाई को तन्हाई में तन्हा कैसे छोड़ दू, तन्हाई ने तन्हाई में तन्हा मेरा साथ दिया है… उपिंदर वडैच
उसकी अम्मी को कहते सुना, हमारी बेटी परदे में रहती है, हम खिड़की देखते रहे, वो सामने बैठी रही… उपिंदर वडैच
आज उसी ने हाथ से लिख कर ख़त, किसी के हाथ भेजा है, शराब छोड़ दो, जिसने हाथ छुड़ाकर हाथ में गिलास दिया है… उपिंदर वडैच